भारतरत्न के इतिहास में तीन ऐसे अपवाद जब राष्ट्रपती भवन के बाहर देने पड़े पुरस्कार | Bharat Ratna Award Ceremony Exceptions

भारतरत्न (Bharat Ratna)  राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है (highest civilian award in india) । इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल (bharat ratna in sports) शामिल है।


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इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। हर साल भारतरत्न पुरस्कार विशिष्ट व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन में एक शानदार समारोह में प्रदान किया जाता है। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं (Bharat Ratna award exceptions in Hindi)। भारत के इतिहास में 3 ऐसे मौके आए जब यह पुरस्कार प्रदान करने के लिए स्वयं राष्ट्रपती को राष्ट्रपती भवन के बाहर जाना पड़ा।


पहला अपवाद वर्ष 1958 में था जब भारतरत्न (Bharat Ratna Award) प्रदान करने का कार्यक्रम दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के बाहर मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में आयोजित किया गया था। उस वर्ष भारतरत्न के प्राप्तकर्ता महर्षि धोंडो केशव कर्वे थे। उस वक्त उनकी 100वी वर्षगांठ थी। इसीलिए पहली बार यह समारोह राष्ट्रपति भवन के बाहर मुंबई में आयोजित किया गया था।


उसके बाद दूसरा एक अपवाद भी महाराष्ट्र के मामले में ही हुआ। यह पुरस्कार नवंबर 2008 में दिग्गज गायक पंडित भीमसेन जोशी को देने की घोषणा की गई थी। हालांकि, उनके खराब स्वास्थ्य के कारण केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुणे में उनके घर जाकर पुरस्कार देने का फैसला किया। तदनुसार, समारोह 10 फरवरी 2009 को पुणे में उनके निवास पर आयोजित किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ए. एफ. अहमद के हाथों पंडित जी को यह पुरस्कार प्रदान किया गया।


भारतरत्न के वितरण (Bharat Ratna Award Ceremony) में तीसरा अपवाद (exception) तब आया जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी। श्री वाजपेयी जी की खराब प्रकृति के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 27 मार्च 2015 को वाजपेयी के आवास का दौरा किया। वहां उन्होंने वाजपेयीजी को यह पुरस्कार दिया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।

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